ज़िन्दगी, कोई ताऊ की बीड़ी नहीं है।
जब चाहा बुझा ली, जब चाहा सुलगा ली।।
जब चाहा बुझा ली, जब चाहा सुलगा ली।।
बहुत वक़्त लगता है,
ख्वाबो को सजाने में।।
बस कुछ वक़्त लगता है,
उन्हें गर्दिश में ले जाने में।।
वक़्त तो आजमाता ही है,
तू भी आज़मा ले।।
कसूर जो भी है,
उसे तो बता दे।।
तू भी आज़मा ले।।
कसूर जो भी है,
उसे तो बता दे।।
मत कुरेद तू भी जख्मो को,
अश्क भी निकलते है।।
शमा के आगे परवाने,
जिस कदर जलते है।।
अश्क भी निकलते है।।
शमा के आगे परवाने,
जिस कदर जलते है।।